शक्ति स्वरूपा : हैंडमेड इको फ्रेंडली गणेशा से समाज में प्रदूषण और धर्म के प्रति अलख जगाती अर्जिता सिन्हा

नवरात्री पर फोकस हर लाइफ आप के लिए ले कर आया है एक स्पेशल सीरीज " शक्ति स्वरूपा " जिसमे हम सोसाइटी में ऑड्स से लड़ कर अपना मुकाम बनाने और समाज के लिए काम करने वाली आम महिलाओं की कहानियां ले कर आ रहा है। आज हम मिलेंगे छत्तीसगढ़ की अर्जिता सिन्हा से जो अपने हाथो से गणेशा प्रतिमा बना कर लोगो को फ्री में देती है गणेश उत्सव के लिए , साथ ही.

शक्ति स्वरूपा : हैंडमेड इको फ्रेंडली गणेशा से समाज में प्रदूषण और धर्म के प्रति अलख जगाती अर्जिता सिन्हा

फीचर्स डेस्क।  प्रकृति के बिगड़ते स्वरुप और बढ़ती त्रासदियों को देखते हुए ये समय की मांग है कि हम सभी ज्यादा से ज्यादा इको फ्रैंडली चीज़े अपनाये। हमारी नवरात्री स्पेशल सीरीज शक्ति स्वरूपा में आज हम मिलने वाले हैं एक ऐसी है समाज प्रहरी से जो ना सिर्फ लोगो में प्रकृति के प्रति संवेदनशील बनने की अलख जगा रही है बल्कि नयी पीढ़ी को ये कला सीखा भी रही है वो भी बिना किसी फीस के। अर्जिता अपने  इको फ्रेंडली गणेश भगवान् की मूर्ति बनाते हुए बीज भी डालती हैं। जिससे विसर्जन के बाद उस मिटटी में पौधे उग सके और ईश्वर के प्रतीक के रूप में वो हमेशा आप के पास रहे....आईये जानते हैं इसके पीछे छुपी प्रेरणा और पूरी कहानी को   

बचपन से हुनर को मिली दिशा

अर्जिता बताती है मिटटी की मूर्तियां बनाना उन्होंने अपनी चाची अंजना श्रीवास्तव से सीखा। घर में तीज त्यौहार में वो ऐसे ही मिटटी से ईश्वर की प्रतिमा बनती थी , उनसे ही प्रभावित हो कर अर्जित ने भी इसमें हाथ आजमाए और धीरे-धीरे वो बस सीखती चली गयी और कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। अर्जिता हर तरह के आर्ट और क्राफ्ट में इंट्रेस्ट था।

इको फ्रैंडली गणेश प्रतिमा का ख्याल कैसे आया

अर्जिता बताती हैं की अंबिकापुर छत्तीसगढ़ का बॉर्डर महाराष्ट्र से लगा हुआ है तो इनके छेत्र में भी गणपति उत्सव बहुत धूम धाम से मनाया जाता है। घर-घर गणपति विराजते हैं। पर विसर्जन के बाद सेरेमिक की मूर्तियां ऊपर जा जाती है छत -विछत हो कर , किसी का हाथ टूटा तो किसी का पैर। समुद्र की लहरों के साथ किनारे पर आकर कूड़े-कच्चे के साथ ईश्वर की प्रतिमाओं का ऐसा पड़ा रहना उन्हें बहुत विचलित करता था।

फिर अर्जिता ने डिसाइड किया की वो अपने घर कच्ची मिटटी से बने गणेश ही स्थापित जो आसानी से मिटटी में घुल कर मूर्त रूप में आ जाते हैं। एक दो बार ऐसा किया तो असा पास के लोगो ने बड़ी तारीफ की और अर्जित से अपने लिए भी ऐसे ही गणपति बनाने की रिक्वेस्ट की। इस तरह से ये सिलसिला चल पड़ा और खास बात ये हैं कि अर्जित कभी भी गणपति की मूर्ति के पैसे नहीं लेती। हर साल उत्सव में लगभग १०० से अधिक मूर्तियां ये खुद बना के लोगो में बांटती हैं।  

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अपने हुनर को बच्चो को बांटा

नेक्स्ट स्टेप अर्जिता ने लिए इस प्रतिभा को बच्चो तक पहुंचाने का ,उन्होंने इसकी क्लासेज लेनी शुरू की जो बाद में बढ़ते बढे वर्कशॉप्स में तब्दील हो गयी।  इस साल १००० से अधिक बच्चों नेअर्जिता से से गणपति की मूर्ति अपने हाथों से बनाई। इनका मानना है की तरह से नयी पीढ़ी में प्रकृति की तरफ संवेदनशीलता बढ़ेगी। और मूर्ति का सृजन करना उनमे अच्छे संस्कार भी डालेगा।  सभी मूर्तियों में बीज भी डाले जाते हैं  जो विसर्जन के बाद पेड़ पौधे का रूप ले कर उस बच्चे के साथ हमेशा रहते हैं जिस से बच्चे में केयरिंग और सेंस ऑफ़ रिस्पांसिबिलिटी भी डेवेलोप होगा।

सहज और सरल है ये मूर्तियां

अर्जिता कहती हैं मै डिज़ाइन ज्यादा कम्प्लीकेट नहीं करती सिंपल ही रखती हु ताकि कोई भी बना सके। सभी आर्गेनिक चीज़ो का इस्तेमाल करती हूँ जैसे गीली मिटटी , हवन सामग्री ,गंगाजल ,हल्दी सजावट के लिए जौ , तिल , कालीमिर्च आदि। ताकि इनका विसर्जन भी आसानी से हो सके , आप इस प्रतिमा को पानी के टब में विसर्जित करें और जब मिटटी घुल कर बैठ जाये तो उसे किसी गमले में शिफ्ट कर दें। मिटटी में बीज आलरेडी हैं तो कुछ ही दिनों में नन्हे पौधे तैयार हो जायेंगे।

फ्यूचर प्लान्स

अर्जिता कहती हैं कि पर्यावरण के लिए ज्यादा से ज्यादा काम करना चाहती हैं साथ ही बाल आहार , महिला सुरक्षा और पॉलिथीन का कम से कम उपयोग हो इन सब पर काम करना चाहती है। कूड़े में पड़ी पॉलीथिन जानवरो द्वारा खा लिए जाने पैर उनको जो नुक्सान होता है वो असहनीय है इसलिए इस दिशा में भी काम करना है।