Navratri Special: कोलकाता के कालीघाट मंदिर के करें दर्शन,जहां माता सती के पैर की उंगलियां गिरी थी

देश के कोने-कोने से देवी के 9 स्वरूपों के दर्शन का मौका लेकर आया है। इसी क्रम में आज हम पश्चिम बंगाल के कोलकाता में स्थित कालीघाट मंदिर के बारे में जानेगे। ये हज़ारों साल पुराना मंदिर है और यहाँ माता सती के पैर की चार उंगलियां गिरी थी।आइए अपने आप में अद्भुत इस मंदिर के बारे में जानते है…

Navratri Special: कोलकाता के कालीघाट मंदिर के करें दर्शन,जहां माता सती के पैर की उंगलियां गिरी थी

फीचर्स डेस्क। बंगाल काली माता की पूजा के लिए हमेशा से ही प्रसिद्ध रहा है। काली माता के यहां आपको कई मंदिर देखने को मिल जाएंगे। पर पश्चिमी बंगाल के कोलकाता का काली घाट मंदिर है बहुत खास। एक तो ये माता के 51 शक्ति पीठों में से एक है और दूसरा यहां मां की तांत्रिक पूजा होती है। सिर्फ बंगाल के हो लोग यहां नहीं आते। दूर दूर से लोग मां के इस रूप का दर्शन करने आते है। क्योंकि ये मंदिर बहुत निराला है। यहां आकर भक्त स्वयं को रोक नहीं पाता और मां की भक्ति में डूब जाता है। मां की छवि को निहारता ही रहता है। आइए जाने कि क्यों खास है ये मंदिर?

51 शक्तिपीठों में से एक

पुराणों के अनुसार जहां जहां जिन जिन स्थानों में देवी सती के शरीर के अंग गिरे, जहां जहां उनके वस्त्र आभूषण गिरे वो शक्ति पीठ बन गए। ये बहुत पवित्र स्थान बन गए और देवीपुराण में इनकी महिमा बताई गई है। ये शक्ति पीठ पूरे भारत में फैले है। इन्हीं 51 शक्ति पीठ में से एक है शक्ति पीठ है कालीघाट मंदिर। कोलकाता का ये कालीघाट मंदिर भी एक शक्ति पीठ मंदिर है। जहां मां सती की दांए पैर की चार उंगलियां गिरी थी। यहां पर शक्ति रूप में कालिका और भैरव रूप में नकुलेश विराजमान है।

मां की प्रतिमा भी है अनूठी

यहां पर जो काली माता की प्रतिमा विराजमान है वो भी बहुत अद्भुत रूप लिए है। यहां मां काली की भव्य प्रतिमा है जिसकी लंबी लाल जिह्वा मुख से बाहर निकली हुई है। मंदिर में त्रिनयना माता रक्तरांबरा, मुक्तकेशी और मुंडमालिनी भी विराजित है। इनके पास ही भैरव रूप लिए नकुलेश का मंदिर भी है। बिना इनके दर्शन किए मां के दर्शन अधूरे है। कालीघाट मंदिर में जो मां की प्रतिमा विराजित है उसमे मां काली का सिर और चार हाथ है। ये प्रतिमा एक चौकोर पत्थर को तराश कर बनाई गई है। मां काली की इस प्रतिमा में बाहर निकली जीभ और दांत सोने के है। इनके नयन और मस्तक गेरुआ सिंदूर से रंगा है। मस्तक पर तिलक भी गेरुआ सिंदूर का ही है। काली मां की प्रतिमा में बने हाथ स्वर्णाभूषणों से और गले में लाल पुष्प माला सजी है।

इन दिनों होती है विशेष पूजा

यूं तो मां की रोज पूजा होती है पर मंगल और शनिवार को विशेष पूजा होती है। इसके अलावा नवरात्रि की अष्टमी में विशेष पूजा अर्चना की जाती है। अगर इन दिनों में मंदिर में स्थित कुंडुपुकर तालाब में स्नान किया जाए तो ऐसा माना जाता है कि भक्त की हर इच्छा पूरी होती है। मां काली के अलावा यहां मां शीतला, षष्ठी और मंगलाचंडी के भी मंदिर विराजमान है।

इसे भी पढ़ें :- Navratri Special: इस नवरात्रि कीजिए करणी माता के दर्शन,जहां मिलता है चूहों का जूठा प्रसाद

पूजा का समय

मंदिर की महिमा अपार है। यहां जब मां की प्रतिमा को पुजारी स्नान करते है तो पुजारी की आंखों में पट्टी बांध दी जाती है।  मंदिर में सुबह 5 बजे से रात 10.30 बजे तक दर्शन होते है। दोपहर में 2 से 5 बजे तक मां को भोग लगाया जाता है तो इस समय मंदिर के द्वार बंद कर दिए जाते है। सुबह 4 बजे मंगला आरती से मंदिर खुल जाता है पर भक्तों के लिए मंदिर के द्वार सुबह 5 बजे ही खुलते है। यह मंदिर तंत्र मंत्र और अघोर कियाओं के लिए भी बहुत प्रसिद्ध है।

नित्य पूजा.. सुबह 5.30 बजे से 7 बजे

भोग समय.. दोपहर 2.30 से 3.30 बजे

संध्या आरती.. शाम 6.30 से 7 बजे 

इसे भी पढ़ें :- Navratri Special 2021: नवरात्रि कलश स्थापना मुहूर्त, पंडित जी से जानिए क्या है स्थापना का सही समय

ऐसा कहा जाता है कि यहां मां काली की प्रतिमा जाग्रत अवस्था में है। नवरात्रि काली माता की पूजा के दिन यहां बहुत भीड़ आती है। और ऐसा माना जाता है कि जो भी इच्छा यहां मांगी जाए वो जरूर पूरी होती है। कोरोना काल में भी यहां श्रद्धालुओं की भीड़ कम नहीं हुई थी। बस मास्क बिना प्रवेश निषेध है।

picture credit:google