Navratri Special: मां आदिशक्ति जगदम्बा की आराधना का पर्व है नवरात्रि

नवरात्रि में मां के नौ रूपों की उपासना की जाती है। नवरात्र मात्र पूजा, पाठ तक ही सीमित नहीं है बल्कि शक्तिरूपिणी मां दुर्गा के नव नामों से नौ प्रकार की दिव्य औषधियां है।इन औषधियों के सेवन से मनुष्य निरोगी काया प्राप्त कर सकता है।स्वास्थ्य संबंधी नकारात्मक दुष्प्रभाओं को दूर कर,शक्ति और ऊर्जा का अनुभव अपने तन मन में करता है।

Navratri Special: मां आदिशक्ति जगदम्बा की आराधना का पर्व है नवरात्रि

फीचर्स डेस्क। इन दैवीय शक्तियों से युक्त औषधियों  का प्रयोग करने से रोगप्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है।नवदुर्गा के औषधीय स्वरूपों को मार्कण्डेय चिकित्सा पद्धति के रूप में दर्शाया गया है।प्राचीन चिकित्सा के इस गुण का वर्णन स्वयं ब्रह्माजी ने दुर्गा कवच में किया है।दुर्गा कवच अठारह पुराणों में से मार्कण्डेय पुराण का हिस्सा है। मां दुर्गा के प्रभाव प्रताप से परिपूर्ण नौ औषधियां इस प्रकार हैं।

प्रथम मां शैलपुत्री यानि हरड़ 

देवी के प्रथम रूप को माता शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है।आयुर्वेदिक औषधि में हरड़ को मां शैलपुत्री का रूप माना जाता है। इसे हेमावती कहते हैं।यह आयुर्वेद की प्रधान औषधि है। हरड़ सात तरह की होती है।

1, हरीतिका –(हरी) भय को हरने वाली 

2, पथया–जो हितकारी है।

3,कायस्थ– जो शरीर को सुदृढ़ बनाती है।

4, अमृता–जो अमृत के समान है।

5, हेमवती –जो हिमालय की पुत्री है।

6, चेतकी– जो चित्त को प्रफुल्लित करती है।

7,श्रेयसी शिवा–जो यशदात्री और कल्याणकारी है ।

द्वितीय मां ब्रह्मचारिणी (ब्राह्मी)

ब्राह्मी को मां ब्रह्मचारिणी का रूप माना जाता है।यह बुद्धि एवं स्मरणशक्ति वर्द्धिनी है।रक्त विकार दूर करती है।स्वर को मधुरता प्रदान करने के कारण ब्राह्मी को मां सरस्वती भी कहा गया है।

तृतीय मां चंद्रघंटा ( चंदूसूर )

नवदुर्गा के तीसरे रूप मां चंद्रघंटा की औषधि चंदूसूर या चमसुर है।इसका पौधा धनिए के पौधे की तरह होता है।इसे चर्म हंती  और चंद्रिका भी कहा गया है,क्योंकि यह मोटापा दूर करती है।शक्तिवर्धक एवं हृदय रोग को भी दूर करती है।

चतुर्थ मां कुष्मांडा (कुम्हड़ा)

मां के चौथे रूप में कुम्हड़े को माना गया है, जो पुष्टिवर्धक और वीर्यवर्द्धक है।यह रक्त विकार दूर कर पेट को साफ रखता है।कुम्हड़ा गैस संबंधी ,रक्त ,पित्त जैसी समस्या को दूर करता है।

पंचम मां स्कंदमाता (अलसी)

नवदुर्गा के पांचवें रूप  की औषधि अलसी है।यह वात, पित्त, कफ दोष नाशक है।

"अलसी नीलपुष्पी पावर्तती स्यादुमा क्षुमा।

अलसी मधुरा तिक्ता स्त्रिग्धापाके कदुर्गरु:।।

उष्णा दृष शुकवातन्धी कफ पित्त विनाशिनी।"

षष्ठम मां कात्यायनी(मोइया)

मोइया देवी के छठे रूप मां कात्यायनी की औषधि है। इसे सर्व में कई नामों से पुकारा जाता है जैसे–अम्बा,अंबालिका,अंबिका।इसके अतिरिक्त इसे मोईया या माचिका भी कहते हैं।यह कफ ,पित्त,अधिक विकार एवं कंठ जनित रोगों को दूर करती है।

सप्तम मां कालरात्रि(नागदौन)

मां कालरात्रि का रूप नागदौन में विराजित है।यह मन और मस्तिष्क के समस्त विकारों का हरण करने वाली औषधि है।कहा जाता है कि इसके पौधे को घर में लगाने से सभी कष्ट दूर होते हैं और इसका सेवन शरीर में व्याप्त सभी विषों को हरता है।

अष्टम मां महागौरी(तुलसी)

नवदुर्गा के आठवें रूप महागौरी की औषधि तुलसी है।जो प्रत्येक घर में पूजनीय है।तुलसी के सात प्रकार होते हैं–सफेद(रामा),काली(श्यामा), मरुता, दवना, कुढेरक, अर्जक और षटपत्र।तुलसी रक्तशोधक है और हृदय रोग को दूर करती है।

"तुलसी सुरसा ग्राम्या सुलभा बहुमंजरी।

अपेतराक्षसी महागौरी शूलघ्नी देवदुन्दुभि: 

तुलसी कटुका तिक्ता हुध उष्णाहाहपित्तकृत् । 

मरुदनिप्रदो हध तीक्षणाष्ण: पित्तलो लघु:।"

नवम मां सिद्धिदात्री(शतावरी)

सिद्धिदात्री रूप में मां शतावरी में विराजमान है।शतावरी बल,बुद्धि एवं वीर्य वर्धक औषधि है।जो भी मनुष्य शतावरी का सेवन करता है,उसके सभी कष्ट दूर होते।

इस तरह मां दुर्गा मार्कण्डेय पुराण में वर्णित देवी कवच में नौ औषधियों में विराजती हैं। मनुष्यों की समस्त बीमारियों को दूर कर उचित रक्त संचालन कर मानव को स्वस्थ रखती हैं। इन दैवीय औषधियों को कुशल आयुर्वेदाचार्य की सलाह लेकर ग्रहण करना चाहिए और साथ ही देवी के उस रूप की  आराधना करनी चाहिए जो रूप औषधियों में व्याप्त है।

इनपुट सोर्स: मंजुला चौधरी

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