Navratri Special 2021: नवरात्रि कलश स्थापना मुहूर्त, पंडित जी से जानिए क्या है स्थापना का सही समय

नवरात्रि आने में कुछ दिन ही शेष बचे है। भक्त गण अभी से नवरात्रि की तैयारी में व्यस्त होंगें। सही समय में यदि कलश की स्थापना कर दी जाएं तो व्रत का शुभ फल मिलता है। वाराणसी के प्रसिद्ध पंडित नवनीत त्रिपाठी बता रहे है मुहूर्त का सही समय…

Navratri Special 2021: नवरात्रि कलश स्थापना मुहूर्त, पंडित जी से जानिए क्या है स्थापना का सही समय

फीचर्स डेस्क। शारदीय नवरात्रि आने ही वाली है। घर घर गूंजेंगे मां के जयकारे। हर कोई डूबा होगा मां की भक्ति में। श्रद्धा सुमन अर्पित कर सभी लोग करेंगे मां को प्रसन्न। पंडित जी कहते है मां की आराधना यूं तो सरल है पर अगर थोड़ी सी भी त्रुटि हो जाए तो अर्थ का अनर्थ हो जाता है। अतः सावधानी के साथ मां की करें आराधना और पाएं व्रत का फल।

कलश स्थापना का मुहूर्त

आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को कलश स्थापन होता है।पंडित जी कहते है कि चित्रा तथा वैधृति में कलश स्थापन का निषेध है। जबकि इस वर्ष संपूर्ण चित्रा तथा वैधृति योग है ऐसे में धर्म सिंधु के अनुसार दोपहर के समय  स्थापना करना चाहिए। आश्विन शुक्ल प्रतिपदा गुरुवार 7 अक्टूबर 2021 को अभिजित् मुहूर्त 11:37 से 12:23 तक है। इस समय कलश स्थापना करना चाहिए । आश्विन शुक्ल प्रतिपदा में कलश स्थापन विधि स्नान ध्यान के बाद शुभ मिट्टी द्वारा वेदी निर्माण करके सप्तधान्य वपन पूर्वक जल से परिपूर्ण ताम्र अथवा मिट्टी का  कलश विधि पूर्वक वैदिक मंत्रों द्वारा स्थापित कर देवी का पूजन करना चाहिए। संकल्प पूर्वक कलश स्थापन होना चाहिए संकल्प के लिए दाहिने हाथ में जल अक्षत पुष्प दूर्वा सुपारी और द्रव्य लेकर देश काल एवं गोत्र प्रवर आदि का उच्चारण कर संकल्प करें । संकल्प के पश्चात विधि पूर्वक वैदिक मंत्रों द्वारा कलश स्थापित कर कलश पर वरुण का पूजन करके पुनः नूतन अथवा प्रतिवर्ष पूज्य देवी की प्रतिमा पर भगवती का आवाहन एवं पूजन करें।

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प्रभु राम ने भी किया था भगवती का अर्चन

लंका-युद्ध में ब्रह्माजी ने प्रभु श्रीराम से रावण वध के लिए चंडी देवी का पूजन कर देवी को प्रसन्न करने को कहा और उनके बताए अनुसार चंडी पूजन और हवन हेतु दुर्लभ एक सौ आठ नीलकमल की व्यवस्था की गई। वहीं दूसरी ओर रावण ने भी अमरता के लोभ में विजय कामना से चंडी पाठ प्रारंभ किया। यह बात इंद्र देव ने पवन देव के माध्यम से श्रीराम के पास पहुँचाई और परामर्श दिया कि चंडी पाठ यथासभंव पूर्ण होने दिया जाए। इधर हवन सामग्री में पूजा स्थल से एक नीलकमल रावण की मायावी शक्ति से गायब हो गया और राम का संकल्प टूटता-सा नजर आने लगा। भय इस बात का था कि देवी माँ रुष्ट न हो जाएँ। दुर्लभ नीलकमल की व्यवस्था तत्काल असंभव थी, तब भगवान राम को सहज ही स्मरण हुआ कि मुझे लोग 'कमलनयन नवकंच लोचन' कहते हैं, तो क्यों न संकल्प पूर्ति हेतु एक नेत्र अर्पित कर दिया जाए और प्रभु राम जैसे ही तूणीर से एक बाण निकालकर अपना नेत्र निकालने के लिए तैयार हुए, तब देवी ने प्रकट होकर , हाथ पकड़कर कहा- राम मैं प्रसन्न हूँ और विजयश्री का आशीर्वाद दिया। वहीं रावण के चंडी पाठ में यज्ञ कर रहे ब्राह्मणों की सेवा में ब्राह्मण बालक का रूप धर कर हनुमानजी सेवा में जुट गए। निःस्वार्थ सेवा देखकर ब्राह्मणों ने हनुमानजी से वर माँगने को कहा। इस पर हनुमान ने विनम्रतापूर्वक कहा- प्रभु, आप प्रसन्न हैं तो जिस मंत्र से यज्ञ कर रहे हैं, उसका एक अक्षर मेरे कहने से बदल दीजिए। ब्राह्मण इस रहस्य को समझ नहीं सके और तथास्तु कह दिया। मंत्र में जयादेवी... भूर्तिहरिणी में 'ह' के स्थान पर 'क' उच्चारित करें, यही मेरी इच्छा है। भूर्तिहरिणी यानी कि प्राणियों की पीड़ा हरने वाली और 'करिणी' का अर्थ हो गया प्राणियों को पीड़ित करने वाली, जिससे देवी रुष्ट हो गईं और रावण का सर्वनाश करवा दिया। हनुमानजी महाराज ने श्लोक में 'ह' की जगह 'क' करवाकर रावण के यज्ञ की दिशा ही बदल दी। अतः भगवती की आराधना में पाठ के समय अति शीघ्रता नहीं करना चाहिए ।

पंडित नवनीत त्रिपाठी द्वारा बताए समय के अनुसार ही कलश स्थापन व अर्चन करें। आपका कल्याण होगा।

स्पेशल थैंक्स पंडित नवनीत त्रिपाठी,वाराणसी

(जैसा पंडित जी ने फोकस हर लाइफ टीम को बताया)

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