माँ की इच्छा...

माँ की इच्छा...

फीचर्स डेस्क। हर त्योहार पर सारा परिवार एक साथ होता था। तीनो भाई ,बहुएं और उनके बच्चे सभी हर त्योहार को खूब धूम धाम से मनाते थे। माँ बाबू जी छोटे बेटे बहु के साथ थे । वो पहले से ही दोनो बड़े बेटों को आने के लिए बोल देते थे। माँ भी बहु के साथ मिल कर सारी तैयारियां कर लेती ।सबकी पसंद के ढेर सारे पकवान बनते। बच्चे बड़े सभी मिल कर खूब मस्ती करते। माँ बाबू जी भी अपने परिवार को  एक साथ देख कर फूले नही समाते थे।

 इस बार की दीवाली से पहले ही माँ की तबियत काफी खराब रहने लगी थी अब उम्र भी हो चली थी । बाबू जी ने दोनो बड़े बेटों को दीवाली से दो तीन दिन पहले ही फोन करके दीवाली पर आने के लिए बोला लेकिन उन्होंने आने के लिए हामी नही भरी।क्योंकि जायदाद के बंटवारे को लेकर उनके मन में थोड़ी खटास आ गयी थी और वो बाबू जी के फैसले से खुश नही थे।

 उन्होंने बोला कि इस बार हम दीवाली अपने घर पर ही करेंगे। इसी बात से माँ बाबू जी दोनो बहुत ही उदास थे। वो मुँह से चाहे कुछ नही बोल रहे थे लेकिन अंदर से उन्हें बिल्कुल भी अच्छा नही लग रहा था कि इतने बड़े त्योहार पर उनका परिवार एक साथ ना हो।

 छोटी बहू भी बुझे मन से पूजा की तैयारी कर रही थी ।उसके दोनो बच्चे भी जानते थे कि इस बार दीवाली फीकी रहेगी क्योंकि वो अकेले ही मनाएंगे इसलिए वो भी उदास थे। उन्होंने रंगोली भी बना ली और रंग बिरंगी लड़ियाँ लगा कर घर को भी रोशन कर दिया।

लेकिन दीवाली पूजन से पहले ही माँ की तबियत एक दम से ज्यादा खराब हो गयी और देखते ही देखते उनकी श्वास गति मंद पड़ती गयी और वो इस दुनिया से विदा हो गयी...

और कुदरत की मर्जी देखिए कुछ समय बाद ही उनका पूरा परिवार  उनके अंतिम क्रियाक्रम के लिए  एक साथ था। लेकिन माँ कहाँ थी ये देखने के लिए।

इनपुट सोर्स : रीटा मक्कड़, मेम्बर फोकस साहित्य ग्रुप।