प्यार: रिश्तों में जुड़ाव या अनदेखी जकड़न

हमेशा अपने मन को अपने में ही समेटे रहने वाली मैं उसका साथ पाकर किसी चिड़िया जैसा महसूस करने लगी थी जिसने अभी अभी उड़ान भरना सीखा हो। उसकी खुरदुरी पीठ पर अपना सिर टिकाकर कुछ ही पल में….

प्यार: रिश्तों में जुड़ाव या अनदेखी जकड़न

फीचर्स डेस्क। मन तो किया कि हाथ बढाऊँ और उसे रोक लूँ और वह पहले की तरह मेरे माथे को चूमकर मुझे अपनी छाती में भर ले। लेकिन इस बार यह इतना आसान नहीं था। इससे पहले भी तो कितनी ही लड़ाईयाँ होती थी हमारे बीच पर उसकी इतनी मजाल कहाँ कि दो- ढाई घँटे से ज़्यादा देर तक हमारी मोहब्बत के बीच ख़ुद को जिंदा रख सके। हम दोनों में से किसी न किसी के मोबाइल स्क्रीन पर एक दूसरे का नाम चमक की उठता और सॉरी के साथ सारा गुस्सा पिघलकर जाने कौन सी नदी में समा जाता और हमारा दिल एक दूसरे से मिलने के लिए तड़प उठता। सॉरी शब्द इतना सुंदर हो सकता है यह बात उससे मिलने के बाद ही जान पायी थी। जाने कैसा तिलिस्म था इश्क़ का कि ज़िंदगी में उसके होने से बढ़कर और कुछ भी नहीं था। हमेशा अपने मन को अपने में ही समेटे रहने वाली मैं उसका साथ पाकर किसी चिड़िया जैसा महसूस करने लगी थी जिसने अभी अभी उड़ान भरना सीखा हो। उसकी खुरदुरी पीठ पर अपना सिर टिकाकर कुछ ही पल में देश-दुनिया की सपनीली यात्रा कर लौट आती थी। जब भी कभी वह नाराज़ होकर जाने लगता बस एक बार हाथ बढ़ाती और वह रुक जाता जैसे वह सिर्फ़ इसीलिए जाने का नाटक करता था कि मैं उसे रोक लूँ। तीन साल दो महीने ऐसे ही बीत गए थे एक दूसरे के साथ रूठते मनाते और लगता था ऐसे ही पूरी ज़िंदगी एल दिन एक दूसरे की बाहों में ख़त्म हो जाएगी पर इस बार कुछ ऐसा था जो अंदर तक दरक गया था। रिश्तों में जुड़ाव हो तो बेहतर लेकिन बंधन जब जकड़न बन जाए तो छटपटाहट होना लाज़िमी है । ऐसे में धीरे से उस बंधन की डोर को ढीला करना पड़ता है जिससे हम साँस ले सकें, जी सकें। मैंने भी वही किया। उसकी पीठ इस बार भी मेरी तरफ़ थी और मैं उसे जाते हुए देख रही थी बस फ़र्क इतना था कि अब वह कभी न लौटने के लिए जा रहा था ।

इनपुट सोर्स: निवेदिता सिंह