जाने द्वारकाधीश मंदिर मंदिर से जुड़े रोचक तथ्य

श्री कृष्ण के प्रसिद्ध द्वारकाधीश मंदिर में भी जन्माष्टमी की छटा देखती ही बनती है। यह गुजरात में गोमती नदी के तट पर मौजूद है और गुजरात का सबसे पवित्र मंदिर माना जाता है। द्वारका शहर में स्थित यह मंदिर अपने आप में एक पवित्र धाम है, जहां हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक द्वारकाधीश मंदिर के दर्शन के लिए आते हैं....

जाने द्वारकाधीश मंदिर मंदिर से जुड़े रोचक तथ्य

फीचर्स डेस्क। जन्माष्टमी पर श्री कृष्ण के बाल स्वरुप को पूजा जाता है।  इस वर्ष 30 अगस्त को जन्माष्टमी का त्यौहार है , सभी अभी से इसकी तैयारियों में लग गए हैं।  मंदिरों में पूजा पाठ का खास प्रबंध होने लगा है। श्री कृष्ण के प्रसिद्ध द्वारकाधीश मंदिर में भी जन्माष्टमी की छटा देखती ही बनती है। यह गुजरात में गोमती नदी के तट पर मौजूद है और गुजरात का सबसे पवित्र मंदिर माना जाता है। द्वारका शहर में स्थित यह मंदिर अपने आप में एक पवित्र धाम है, जहां हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक द्वारकाधीश मंदिर के दर्शन के लिए आते हैं। आज हम आप को इस मंदिर से जुड़े ही कुछ रोचक तथ्यों के बारे में बता रहे हैं

प्राचीनतम मंदिर

ऐसा माना जाता है कि द्वारकाधीश मंदिर लगभग 2 हज़ार 2 सौ साल पुराना है और भारत के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण कृष्ण काल में व्रजभान ने करवाया था।  व्रजभान को भगवान कृष्ण जी का पड़पोता माना जाता है। पौराणिक कथाओं में कहा गया  है कि यह स्थान 'हरि गृह' यानि भगवान कृष्ण जी का निवास स्थल हुआ करता था, जिसे बाद में मंदिर का रूप दे दिया गया। 

कई नामों से जाता है

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द्वारकाधीश मंदिर को कई नामों से जाना जाता है। इस मंदिर को कोई 'कृष्ण मंदिर', कोई 'द्वारिका मंदिर' तो कोई 'हरि मंदिर' के नाम से पुकारता है, लेकिन इस मंदिर को द्वारकाधीश मंदिर के बाद सबसे अधिक 'जगत मंदिर' के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर को 'निज मंदिर' के रूप में भी जाना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्री कृष्ण द्वारा समुद्र से प्राप्त भूमि के एक टुकड़े पर इस शहर को बनाया गया था, जहां अब मंदिर मौजूद है।

वास्तुकला का अनुपम नमूना

द्वारकाधीश मंदिर का निर्माण बेहद ही भव्य तरीके से किया गया है। इसे चालुक्य शैली में निर्मित किया गया, जिसमें चूना पत्थर और रेत का इस्तेमाल किया गया है। जो भारत की प्राचीनतम शैली को दर्शाता है। यह भी कहा जाता है कि यह मंदिर एक पत्थर के टुकड़े पर बना हुआ है। पांच मंजिला यह मंदिर 72 स्तंभों पर बना हुआ है, जो किसी भी अद्भुत अजूबे से कम नहीं है।

75 फ़ीट ऊँचा ध्वज

इस मंदिर के चोटी पर पर जो ध्वज लहराता है उसकी ऊंचाई 75 फ़ीट है। इसे भक्त सूर्य और चंद्रमा का प्रतीक मानते हैं। मंदिर के ध्वज को दिनभर में कम से कम पांच बार बदला जाता है। जब भी ध्वज को नीचे उतारा जाता है, तो भक्त उसे छूने के लिए उत्साहित रहते हैं।

मोक्ष द्वार और स्वर्ग द्वार

इस मंदिर में मौजूद दो द्वार हैं। जिनको बेहद महत्पूर्ण माना जाता है। उत्तर दिशा की ओर मौजूद है, जिसे 'मोक्ष द्वार' के नाम से जाना जाता है और दक्षिण दिशा की ओर है जिसे 'स्वर्ग द्वार' भी कहा जाता है। भक्तगण दक्षिण द्वार से होते हुए आप गोमती नदी के किनारे भी जा सकते हैं।