हिंदी दिवस पर विशेष, एडजेस्टमेंट
हिन्दी तुम उदास मत हो कोई न कोई जरुर तुम्हारे गले में वरमाला पहनाकर तुम्हारा वरण करेगा और तुम उसकी प्रियतमा कहलाओगी ।
फीचर्स डेस्क। हिन्दी उदास अपने कमरे में घुटनों पर सिर रख कर सोच रही थी ।
आखिर मुझमें ऐसी क्या कमी है ?
सुन्दर हूँ , मृदु भाषी हूँ फिर भी मुझसे कोई विवाह नही करना चाहता ।
तभी मालवी के कमरे में प्रवेश से हिन्दी की विचारश्रृखंला टूटी ओह मालवी तुम आगई आओ बैठो ।
क्या हिन्दी तुम अभी तक तैयार नहीं हुई हिन्दी दिवस में चलना है तुम जल्दी से तैयार हो जाओ ।
आओ मैं तुम्हें अलंकारों से सजा दू ।
मालवी मुझे नहीं सजना हे और नही कही जाना है ।
क्या हुआ हिन्दी क्यों नहीं चलना है ?
मालवी मुझ जैसी अभागन को कोई नहीं पूछता है । विवाह के बाजार में मेरी कोई कीमत नहीं । सब के सब उस अंग्रेजन के पीछे भागते है।इन के लिए तो मैं घर की मुर्गी दाल बराबर है ।
ऐसा नही है सखी हर चमकीली वस्तु सोना नही होती । हिन्दी तुम उदास मत हो कोई न कोई जरुर तुम्हारे गले में वरमाला पहनाकर तुम्हारा वरण करेगा और तुम उसकी प्रियतमा कहलाओगी ।
मालवी ये सुनहरे सपने मत दिखाओ हम सब एक ही नाव के यात्री हैं ।
ओहो हम बातें ही करते रह गये ओर बुंदेली तो पार्लर से तैयार होकर भी आगई ।
हे गाईस तुम सब तैयार हो मराठी अवधी भी आ रही है ।
मालवी बोली वाओ बुंदेली आज तो गजब ढा रही हो क्या बात है ?
आज हिन्दी दिवस में सब तुम्ही पर कविता पढ़ने वाले हैं ।
मालवी बोली बुंदेली माला तो तुम्हे हर बार मिलती हे इस बार शायद वरमाला मिल जाए ।
मालवी मैं तो चाहती हूं आज हम सब के गले में वरमाला हो होहो हा हा हाहा।
इनपुट सोर्स: अर्विना गहलोत
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