ये मंदिर है 51 शक्तिपीठों में से एक, यहाँ होती है आँखों संबंधी हर समस्या दूर

नैना देवी का मंदिर उत्तरांचल में स्थित नैनीताल में स्थित है। आप ये ज़रूर सोच रहीं होंगी की इस मंदिर की ऐसी क्या विशेषता है कि इसे शक्तिपीठों में शामिल किया गया है। तो आइए आपकी श्रद्धा भक्ति की ज्योत को अखंड करने वाली माँ नैना देवी के बारे में जानते हैं ये रोचक बातें, इस आर्टिकल में।

ये मंदिर है  51 शक्तिपीठों में से एक, यहाँ होती है आँखों संबंधी हर समस्या दूर

फीचर्स डेस्क।  आज हम उस शक्तिपीठ के बारे में आपको बतायेंगे जहाँ माँ सती के नेत्र गिरे थे और वो मंदिर नैना देवी के नाम से फेमस हो गया और ये नैना देवी का मंदिर  उत्तरांचल में स्थित नैनीताल में स्थित है। आप ये ज़रूर सोच रहीं होंगी की इस मंदिर की ऐसी क्या विशेषता है कि इसे शक्तिपीठों में शामिल किया गया है। तो आइए आपकी श्रद्धा भक्ति की ज्योत को अखंड करने वाली माँ नैना देवी के बारे में जानते हैं ये रोचक बातें, इस आर्टिकल में।

नैना देवी 51 शक्तिपीठों में है शामिल

नैना देवी का पावन मंदिर 51 शक्तिपीठों में शामिल है इसीलिए भी ये मंदिर चमत्कारिक है। कहा जाता है कि 1880 में ये मंदिर भूस्खलन होने से नष्ट हो गया था लेकिन माता रानी की कृपा और प्रेरणा से इस मंदिर का निर्माण फिर से किया गया। इस मंदिर में दूर दूर से भक्तगण माता के दर्शन को आते हैं और अपना मनवांछित फल पाते हैं।

नेत्र संबंधी प्रॉब्लम्स होती हैं दूर

जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है कि इस मंदिर में नेत्र संबंधी सारी प्रॉब्लम्स दूर हो जाती हैं। चाहे कितना ही पुराने से पुराना रोग हो वो जड़ से खत्म हो जाता है। इस मंदिर में नैना देवी के 2 नेत्र बने हैं और उन नेत्रों के दर्शन मात्र से ही भक्तों के आँखों संबंधी कष्ट दूर हो जाते हैं।

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माँ नैना देवी के साथ हैं इन भगवानों की मूर्तियाँ

इस मंदिर में माँ नैना देवी के साथ ही माँ काली देवी और  भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित है। दायीं ओर हनुमान जी की भी प्रतिमा है और बायीं ओर पीपल के पेड़ हैं जो कि मंदिर की सुंदरता को और भी आकर्षक बना देते हैं।

कैसे पड़ीं नैना देवी मंदिर की नींव 

हम आपको बता दें कि नैना देवी मंदिर में जो नेत्र हैं वो माता सती के नेत्र हैं । हुआ कुछ ऐसे की जब माता सती ने अपने पिता राजा दक्ष प्रजापति द्वारा किये गए यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति दे दी तब भगवान शिव शंकर भोलेनाथ अपनी अर्धांगनी माता सती के शव को अपने कंधों में उठा कर तांडव करने लगे तो देवता गण इस बात से डर गए कि महादेव के इस तांडव से दुनिया मे प्रलय आ जाएगी और उस प्रलय से बचने का एक मात्र सहारा थे भगवान विष्णु। देवताओं के इस डर को दूर करने और दुनिया को प्रलय से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर को 51 भागों में बाँट दिया और उनके शरीर का जो जो हिस्सा जहाँ जहाँ गिरा वह माता के शक्तिपीठों का निर्माण हुआ और माता सती के नेत्र उत्तरांचल के भूमि में गिरे तो यहाँ नैना देवी के मंदिर की नीव पड़ीं और तभी से इस मंदिर की मान्यता पूरे देश में फैल गई।

नंदा अष्टमी के दिन होता है भव्य मेले का आयोजन

नैना देवी को माता पार्वती का ही  रूप माना जाता है और यही  कारण  है कि उन्हें नंदा देवी भी कहा जाता है और मंदिर में नंदा अष्टमी के दिन भव्य मेले का आयोजन किया जाता है और ये मेला 8 दिनों तक चलता है और इस मेले का आनंद लेने दूर-दूर से लोग आते हैं और इसी के साथ आपको ये भी बता दें कि ये मंदिर नैनीताल में मेन बस स्टैंड से केवल 2 k.m की दूरी पर  बना हुआ है।

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नैनीझील का महत्व

जिस तरह से नैना देवी के मंदिर को बहुत पवित्र समझा जाता है उसी तरह से नैनीझील को भी बहुत पवित्र माना जाता है।कथा के अनुसार  जब अत्री, पुलस्त्य और पुलह ऋषि को नैनीताल में कहीं पानी नहीं मिल रहा था तो  उन्होंने एक गड्ढा खोदा और मानसरोवर झील से पानी लाकर इममें भर दिया और कहा जाता है कि तब से यहाँ कभी भी पानी की कमी नहीं हुई और ये एक झील बन गई।  इसे स्कंद पुराण में त्रिऋषि सरोवर भी कहा जाता है। मान्यता ये भी  है कि झील में  जो भी भक्त डुबकी लगाता है उसे उतना ही पुण्य मिलता है जितना मानसरोवर नदी में नहाने से मिलता है।