घाट 84 : रिश्तों का पोस्टमार्टम, भाग-2

घाट 84 : रिश्तों का पोस्टमार्टम, भाग-2

फीचर्स डेस्क। चौरासी घाट के बारे में जानते हो...फिर निशा ने उसी अन्दाज़ में पूँछा... नहीं, मैंने उत्सुकता के साथ उत्तर दिया। तो फिर चलो तुम्हें घाट चौरासी के दर्शन कराते हैं और रात वहीं रूकने का पूरा जुगाड़... फिर से बड़े अनोखे अन्दाज़ में निशा ने कहा...

"जुगाड़" भारत में सबसे अधिक बोला जाने वाले शब्दों में से एक है, हमारे यहां तो शादी, बारात, पढाई, नौकरी से लेकर सरकार बनाने तक जुगाड़ का बोलबाला है। सच में अगर जुगाड़ न हो तो देश की आधी आबादी तो भूख से ही मर जायें...।

.मैं अपने आप को समझा रहा था कि अचानक निशा ने कन्धे पर हाथ रखकर पूंछा...

जिन्दा हो या शहीद हो गये भाई ?

ये क्या... भाई... यदपि मेरे निशा का कोई रिश्ता नहीं था पर भाई... यार इतने खराब दिन आ गये क्या एक सुन्दर सी लड़की भाई बोल रही है... सच कहता हूँ आधे से अधिक कुंवारे लड़कों के डिप्रेशन में रहने का सबसे बड़ा कारण यही हैं। मन तो किया 180 साल की जेल सुना दूँ पर...

ख़ैर... अभी मैंने अपनी अकड़ जेब में रखी क्योंकि अकड़ दिखाने के लिये जेब गर्म और भारी होनी चाहिये और मेरा तो सबकुछ फट चुका था... अकड़ भी और जेब भी...।

बीएचयू चौराहे से पैदल की अस्सी घाट के लिये निकल पड़े..... वो आगे आगे और मैं पीछे पीछे......लड़की तो वो थी और डर मैं रहा था..........यार रात बहुत बड़ी होती है कैसे कटेगी वो भी आसमान के नीचे... लग गये बेटा, आज तो... अपने आप को समझा रहा था। समझा क्या स्वयं को धोखा देने की भरपूर कोशिश कर रहा था।

थोड़ी ही देर में हम सुबह बनारस के मंच पर पहुँच गये..... मैंने देखा कि लगभग सभी लोग वहां से वापस जा रहे थे और हम घाट की ओर,  वहां 4-6 संगमरमर की चौकियां पड़ी थी, जिन्हें देखकर मैं खुश हुआ कि हो सकता है यही होगा घाट चौरासी जिस पर सोने की व्यवस्था है। इधर उधर देखा तो इक्का दुक्का लोग नज़र आये वो भी लेमन टी और भेलपूरी वाले ही थे जो अपना अपना सामान समेटने को कोशिश कर रहे थे।

यही घाट चौरासी है क्या.....मैंने प्रफुल्लित होकर पूंछा... नहीं उत्तर मिला। हम आगे बढे और सीढियों पर बैठ गये। थोड़ी देर में निशा ने कहा खाने के लिये कुछ है क्या तुम्हारे पास..... मैंने ना में सर हिलाया।

अबे चोचू ही हो... निशा ने कहा...मैंने सोंचा ये बला कौन सी है... हो सकता है अकेली फस गयी है रात में तो चाहती है उसकी सुरक्षा के लिये कोई साथ रहे... ऐसा सोंचते हुये मैं अपनी बाहें ऊपर चढाने लगा। 

आज के दिन ऐसे नये नये शब्द सुन रहा था जो ऑक्सफोर्ड डिक्सनरी में भी न मिलें। निशा ने अपना बैग खोला और एक मिठाई का डिब्बा निकाला जो सामान्यतया स्टेशन में लंच या डिनर को पार्सल देने में उपयोग होता है। उसने मेरी तरफ बढाते हुये कहा .......इतना है थोड़ा थोड़ा खा लेते हैं। उसने डिब्बे से एक पूड़ी निकाली और पहला प्रश्न पूंछा......तो नाम क्या है... बताओगे ?

सौरभ मैंने भी पूड़ी का एक टुकड़ा काटते हुये उत्तर दिया... तो यहां कैसे... उसका अगला प्रश्न... मुझे लगा अन्जान जगह है एक अजनबी साथ में तो लड़की कम से कम अपनी सुरक्षा के लिये इस तरह के सवाल तो पूंछेगी ही... स्वयं से मैंने कहा।

बस बीएचयू में पोलिटिकल साइंस के एडमिशन प्रक्रिया के बारे में जानना चाहता था... सिर्फ जानना चाहते हो या करना भी... उसका अगला प्रश्न।

नहीं करना भी है... इसीलिये तो पता करने आया था... अब तक मैं अपनी परेशानी को लगभग भूल ही गया था... और आप यहां? मैनें पूंछा... बस ऐसे ही... उसने अपने बैग में हाथ फेरते हुये कहा।

बड़ बड़ करने वाली और पुरूषों की भॉति एटिट्यूड रखने वाली लड़की का पहला उत्तर था जिसे सुनकर ऐसा लगा इस बार उसने बहुत कुछ सोंचकर उत्तर दिया है। हांलाकि उत्तर में ऐसा कुछ भी नहीं था जिससे मुझे अचम्भित होना हो। मुझे लगा इतनी बातें जो उसने अबतक की हैं वो अपनी परेशानी को छिपाने के लिये कही होंगी जो प्रायः लड़कियां करती हैं।

हमारा डिनर ! हो चुका था जो सिर्फ मानसिक रूप से ये व्यक्त करने के लिये काफ़ी था कि हमने कुछ खाया है। फिर लगभग गर्म हो चुके पानी की बोतल से पानी पिया- लो सौरभ हो गया डिनर। अब कुछ टहल लिया जाय कहते हैं कि खाना खाने के बाद टहलना चाहिये.....निशा ने कहा।

हां हां क्यों नहीं.. .मैंने उत्तर दिया। मैं बहुत थक चुका था पर जिसने मेरी इतनी सहायता की मैं किसी भी प्रकार से उसे नाराज नहीं करना चाहता था। हम आगे बढे... गंगा के किनारे की चमकीली रेंत पर चांदनी ऐसी लग रही थी सारे आसमान के आधे तारे हमारे पैरों के नीचे हैं और आधे ऊपर, हम लोग आगे बढे... तो सौरभ....... यही नाम बताया ना तुमने अपना... जी मैंने कहा।

कौन कौन है तुम्हारे घर में? निशा ने फिर पूंछा....मम्मी, पापा और दो छोटे भाई... मैंने उत्तर दिया।

चांदनी रात, ठंडी ठंडी हवा, गंगा के शांत पानी पर हल्की हल्की लहरें जैसे अपना नाम लिख रहीं हों हम ऐसे ही कुछ देर टहलते रहे।

निशा के हाथ में एक खुबसूरत सी डायरी थी जो वो बार बार हाथों में घुमा रही थी... ऐसा तभी होता है जब कोई बहुत गहरी सोंच में डूबा हो... पर मुझे हिम्मत न हुयी कि उससे कुछ पूंछ सकूं.... कभी कभी ऐसा लग रहा था कि वो डायरी को गंगा में फेंक देना चाहती थी... पर ऐसा क्यों करेगी... इसको भी नहीं समझ पा रहा था।

मैनें कहा अब कहीं रात काटने की जगह भी तलाश लें... अरे हां.....उसने कहा। हमने अपना बैग उठाया और सुबह बनारस के मंच के पास ही अस्सी घाट पर आये जहां शाम की आरती होती है... उसने कहा लो आ गये चौरासी घाट... मैंने कहा ये तो अस्सी घाट है।

वो जोर से हंसी... जिसे सुनने वाला मेरे अतिरिक्त कोई न था, जो कुछ लोग थे वो भी सोने की तैयारी में थे।

चलो चौरासी घाट ले चलूं... कहकर उसने कहा गिनो... इक्क्यासी, बयासी, तिरयासी और चौरासी... चार कदम चली। लो यही है घाट चौरासी... बोलकर सीढीयों के पास अपना चादर बिछाने लगी।

अपना बैग सिरहाने रखकर बोली बिस्तर लगा लो... मुझे जोर से हंसी आ गयी... ये है घाट चौरासी... शायद बनारस आने के बाद ये पहला अवसर था जब मैं हंसा था।

अगल बगल चादर बिछा कर हम लेट चुके थे। वैसे जहां तहां और लोग भी सोते हुये नज़र आ रहे थे। तो सौरभ पूरा नाम क्या लिखते हो, उसने लेटे लेटे ही फिर प्रश्न किया... सौरभ दीक्षित...मैंने उत्तर दिया।

ओह तो पण्डित जी हो... वो मुस्कुराई.. .इतनी खूबसूरत मुस्कुराहट, शायद ही मैंने कभी देखी हो... मन में अजीब अजीब से विचार आ रहे थे... नदी का किनारा, गंगा के पानी की हर हर की आवाज़, कहते हैं सभी नदियां कल कल करके बहती हैं पर गंगा ही एक ऐसी नदी है जो हर हर (हरि हरि) करके बहती है।

कभी इस तरह से आसमान के नीचे वो भी नदी के किनारे सोया नहीं, ऊपर से लड़की है साथ में कुछ ऊंच नींच हो गयी तो सबसे पहले मेरा ही काम 35 हो जायेगा। पुलिस हमसे ही शुरू करेगी पूंछताछ.....सुना है पहले ठोकती है बाद में पूंछती है पुलिस... नहीं नहीं ऐसा कुछ नहीं होगा.......इतने लोग तो हैं आस पास....जब वो लड़की नहीं डर रही तो तुम क्यो डर रहे हो। मैनें खुद को धीरज बंधाते हुये कहा।

तो पण्डित जी सुबह मुलाकात होती है, गुड नाईट। निशा बोली- गुड नाइट, मैंने धीरे से उत्तर दिया। निशा नें अपनी धानी रंग की चूनर को सर से ओढ लिया और कब सो गयी पता ही चला

इस प्रकार कभी खुले में सोया नहीं था इसलिये कुछ अजीब सा डर लग रहा था, मैं इधर उधर देख रहा था। मेरे मन में एक अजीब सी खुशी भी थी..... यार ऐसा तो फिल्मों में होता है, मेरी भी लव स्टोरी शुरू हो जायेगी... मैं अपने आप को शबासी दे रहा था कि अचानक सोती हुयी निशा की ओर नजर पड़ी... उसका सुन्दर चेहरा जालीदार दुपट्टे से साफ दिख रहा था, चांद में ज्यादा चमक थी या उसके चेहरे में....अन्दाज़ा लगाना मुश्किल था। उसका यौवन साफ दिख रहा था ......उसका शरीर किसी चन्दन की लकड़ी सा महक रहा था..... उसे देखकर तो कोई भी विश्वामित्र तपस्या छोड़ दे... लगता था भगवान ने भी वर्डबैंक से स्पेशल लोन लेकर इसे तराशा होगा।

अब मेरी आंखे खुद ब खुद बंद होने लगीं थी और मुझे डर से अधिक नीद की चिंता थी। वैसे भी कहते हैं कि प्यार न देखे जात-पात, भूख न देखे जूठी भात और नींद न देखे टूटी खाट... मैंने खुद को गुडनाइट कहा और कब सो गया.... पता ही नहीं चला।

आस पास चहलकदमी से अचानक मेरी आँख खुली, निशा पास में हीं सो रही थी। पास में हीं सुबह की आरती की तैयारियां चल रहीं थी, लोग भी अपने अपने कार्यों में लग गये थे कि तभी एक छोटा बच्चा आया चाय चाय करता हुआ। चाय चाहिये साहब सुबह की ऐसी चाय और कहीं नहीं मिलेगी। कहते हुये उसने एक चाय का कप मेरी ओर बढाया। पण्डित जी... लड़के ने चिल्लाते हुये कहा... पण्डित जी आये हैं... फिर तेजी से भागा।

मैंने खुद से कहा, यार मैंने क्या कर दिया... मुझे देखकर ऐसे क्यों भागा लड़का... मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा। थोड़ी ही देर में सारे घाट पर सिर्फ पण्डित जी, पण्डित जी आवाज ही सुनाई दे रही थीं... तभी 10-12 लड़के तथा 4-6 लड़कियां घाट पर आ गयीं ... कहां हैं पण्डित जी... उन्होंने पूंछा।

लड़के लड़कियों का समूह मेरी ओर ही बढा चला आ रहा था और मैं कुछ भी सोंचने या समझने की स्थिति में नहीं था। मेरे पास आकर उन्होंने निशा को देखा और बोले पण्डित जी...।

निशा उठकर बैठी और बोली... तुमलोग आ गये... तभी 2 लड़कों ने आकर उसका चादर समेंटना शुरू किया एक ने उसका बैग उठाया और एक लड़की ने उसे पानी की बोतल देकर बोला... अब चलें?

मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि ये हो क्या रहा है... निशा.. .नहीं पण्डित जी... कौन हैं...ये लोग कौन हैं... अगर उसे सब जानते हैं तो उसने रात यहां मेरे साथ ऐसे क्यों बिताई... मैं उसकी सुरक्षा कर रहा था या वो मेरी... उस डायरी में क्या था जिसे वो गंगा जी में फेंकना चाहती थी... मेरी आँखों के सामने सभी कुछ स्लो मोशन में चल रहा था... और ...।

क्रमशः इनपुट: सौरभ दीक्षित ।

.............................................................................................................................................................................................................................

प्रिय पाठक,

आपके पास इस तरह की कोई सच्ची कहानी, अपनी कोई घटना, कोई यादगार पल है तो आप focus24news.com से शेयर कर सकते हैं/कर सकती हैं। आपका पूरा पता और नाम गोपनीय रखा जाएगा। हर महीने news website की तरफ से इनाम राशि जारी किया जाता है। यदि आपकी शेयर की गई स्टोरी सलेक्ट होती है तो आप फोकस वीनर प्राइज के हकदार होंगे/होंगी।   

आप मुझे मेल करें-    neeraj@focus24news.com