फ़क़त प्यार...

फ़क़त प्यार...

फीचर्स डेस्क। रसोई में हो रही खटर पर से पल्लवी की नींद खुल गई, देखा तो अभी चार ही बज रहे थे । हड़बड़ाहट कर उठ गई कि कहीं बिल्ली तो नहीं आ गई ?

बाहर निकली तो देखा खाने की मेज पर बहुत करीने से कुछ ढका रखा था। समझ नहीं आया रात सोई तो मेज पोंछ कर, साफ करके थी, ये सब क्या है, कहाँ से आया ? तब तक रसोई से रमन निकलते हुऐ दिखे, उनके हाथ में चाय की ट्रे थी । देखते ही बोले, "अरे तुम उठ गई, आओ तुम्हारी सरगी तैयार है ।" कहते हुऐ मेज पर रखे समान से कपड़ा हटा दिया । सब कुछ था फल भी, मेवा भी, मीठा भी जैसे सासू माँ देती थीं । उसकी आँखें नम हो गई । सासू माँ के बाद ये पहला करवा था । वो कुछ दिनों से सोच रही थी इस बार क्या कैसे होगा । इधर तीन दिन से पति देव से बोल-चाल भी बंद थी । हर बात में अपनी चलाते हैं उसकी इच्छाओं का कोई ख्याल ही नहीं ।

आज चुपके से ये सब तैयारी देख अंदर ही अंदर खुशी सम्भल ही नहीं रही थी।

"आप क्यों इतना परेशान हुऐ, मैं कुछ भी कर लेती।"

"परेशान ?"

"हाँ, मेरे लिये नाहक ही परेशान हुऐ ?" तीन दिन का गुस्सा मन में उबाल मार गया ।

"अरे नाहक नहीं, अपना भला भी तो सोचना था" कह कर मुस्कुराये, "कहीं गुस्से में तुमने करवा चौथ का व्रत ही नहीं रखा तो मेरा तो टिकट कटा समझो" कहते हुऐ पास आये और आलिंगन में लेते हुऐ माथे पर एक प्यार भरा चुम्बन जड़ दिया। ये इनका सॉरी कहने का अपना ही अंदाज है।

इनपुट सोर्स : संजीव आहूजा, बाराबंकी।