Expert Tips: घर पर कैसे दे पितरों को तर्पण,तर्पण के समय क्या करे और क्या न करें आइए एक्सपर्ट से जानते है

श्राद्ध पक्ष यानि पितृ पक्ष। हिंदू धर्म में श्राद्ध का बहुत बड़ा महत्व है। पितरों की आत्मा की शांति के लिए हर साल 15 दिन होते है हमारे पितरों को अर्पण। आप घर पर रहकर भी कर सकते है अपने पूर्वजों का तर्पण। कैसे करें, अपने पितरों की शांति के लिए तर्पण । पूरी विधि विधान से बता रहे है हमारे एक्सपर्ट पंडित जी विनत भट्ट ...

Expert Tips: घर पर कैसे दे पितरों को तर्पण,तर्पण के समय क्या करे और क्या न करें आइए एक्सपर्ट से जानते है

फीचर्स डेस्क। पितृ पक्ष यानि श्राद्ध पक्ष शुरू हो चुका है। और श्राद्ध पक्ष के ये 15 दिन याद करेंगे हम सब अपने उन पूर्वजों को जो हमें शारीरिक रूप से छोड़ कर चले गए । उनकी आत्मा की शांति हेतु तर्पण किया जाएगा। तर्पण देने का अर्थ है किसी प्यासे को पानी पिलाना। जैसे कोई प्यासा पानी पीकर शांति महसूस करता है ,वैसे ही हमारे पूर्वज भी तर्पण के जल से तृप्त होते है और उनकी आत्मा शांत होती है और हमें आशीर्वाद देती है। घर पर तर्पण कैसे करना चाहिए और कब करना चाहिए। ये सभी बातों से अवगत कराएंगे पंडित विनत भट्ट। साथ ही तर्पण के समय क्या सावधानी रखनी चाहिए ये भी बताएंगे। 

कैसे और कब करें तर्पण

पंडित जी कहते है कि पितृ पक्ष में तर्पण का बहुत महत्व है। घर पर आसानी से हम तर्पण कर सकते है। घर पर तर्पण करने की विधि सरल है। इसमें एक तो यज्ञोपवीत का बहुत महत्व है। जनेऊ पहन कर ही तर्पण करना चाहिए। तर्पण करने का समय है कुतुप काल यानी माध्याहन के बाद का समय लगभग दोपहर 12.30 बजे बाद का समय। उस समय को कुतुप काल कहा जाता है जो तर्पण के लिए सबसे अच्छा समय माना जाता है। पंडित जी के अनुसार तर्पण तीन जगह किया है एक पूरब में ,उत्तर में और दक्षिण में। पूरब में देवताओं का तर्पण किया जाता है। ऋषियों का तर्पण उत्तर मुख होकर किया जाता है। और पितरों का तर्पण दक्षिण मुख होकर किया जाता है। इसमें जनेऊ पहन कर तर्पण करने का भी अलग अलग विधान है। पूरब मुख में जब होकर व्यक्ति देवता का तर्पण करता है तब जनेऊ सीधा होता है। यदि आप उत्तर मुख होकर ऋषियों का तर्पण कर रहे है तो माला की तरह जनेऊ धारण कर सकते है। परंतु जब आप दक्षिण मुख होकर पितरों का तर्पण करते है तब आपका जनेऊ उल्टा होना चाहिए।यानी की जनेऊ राइट तरफ हो जो संसार से चले गए उन्ही का तर्पण किया जाता है। जीवित लोगों का तर्पण नहीं किया जाता।

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तर्पण के लिए क्या है जरूरी 

पंडित जी कहते है कि तर्पण के लिए बहुत ज्यादा सामान की आवश्यकता नहीं। बस तर्पण के लिए मुख्य सामान जो है वो इस प्रकार है, एक तो शुद्ध जल, दूसरा गंगा जल इसमें आप चंदन मिला सकते है। तर्पण में आप कच्चा दूध भी ले सकते है। उसमे तुलसी पत्र जरूर डालें। और जो समय बताया गया है उसी में तर्पण मिले तभी उस तर्पण का लाभ मिलता है।

तर्पण देने का सही तरीका व मंत्र

पंडित जी के अनुसार तर्पण के लिए जो जल दिया जाता है पितरों को वो अंगुष्ठ और तर्जनी उंगली के बीच में होता है पितृ तीर्थ, इसी से तर्पण दिया जाता है। पितृ तीर्थ में अंगूठे का विशेष स्थान होता है। वहां से ही तर्पण किया जाता है। और तर्पण तीन तीन बार किया जाता है। जिनको तर्पण दिया जा रहा है उनको "तर्पयामी " द्वारा तर्पण दिया जाता है। अगर पुरुष है तो "तस्मै ते स्वधा नमः" और अगर स्त्री का तर्पण किया जाता है तो "तस्ये ते स्वधा नमः"। ऐसे तीन तीन बार उच्चारण किया जाता है।

तर्पण में ध्यान देने योग्य बातें

 

  • सबसे पहले तो आप सदैव नहा कर ही तर्पण करें। फिर तर्पण करने के बाद फिर से नहाएं।

  • तर्पण सदैव कुशासन में बैठ कर ही करें।

  • कुशासन के आगे के भाग से देवताओं का तर्पण,मध्य भाग से मनुष्यों का तर्पण और  मूल तथा अग्रभाग से पितरों का तर्पण करें।

  • घर में तर्पण करते समय तिल का निषेध है। जब आप किसी सरोवर में, किसी बगीचे में या किसी तीर्थ स्थान पर तर्पण करते है तब तिल का प्रयोग कर सकते है। परंतु घर पर नहीं।

  • यदि ग्रहण है, पितृ श्राद्ध है,अमावस्या है और संक्रांति का दिन है तो आप घर में तिल से तर्पण कर सकते है, अन्य दिनों में घर में तिल से तर्पण न करें।

अगर आप इन सभी बातों का ध्यान रखते है तो अवश्य ही आपके पूर्वज आपसे प्रसन्न होकर देंगे आपको आशीर्वाद।

स्पेशल थैंक्स पंडित विनत भट्ट

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