स्वामी निश्चलानंद की मांग- हिंदुओं को सौंपा जाए ज्ञानवापी परिसर, मक्का को घोषित किया जाए मक्केश्वर मंदिर
वाराणसी। वाराणसी के अस्सी स्थित मठ में हिंदू राष्ट्र संगोष्ठी के बाद पत्रकार वार्ता आयोजित की गई। वार्ता में गोवर्धन मठ पुरी पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा कि ज्ञानवापी में शिवलिंग ही है। वो आदि विशेश्वर हैं। किसी को संशय नहीं होना चाहिए। वे आदि विशेश्वर हैं। ज्ञानवापी परिसर को जल्द से जल्द हिंदुओं को सौंप देना चाहिए। शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा कि मुसलमानों को न्याय सहिष्णु होना चाहिए। उन्हें आक्रांताओं की थाती (कोई चीज) संभाल कर नहीं रखनी चाहिए। परातंत्र में मुगलवंश के कुछ शासकों ने मानवाधिकार को कुचल कर मंदिरों पर कब्जा किया। मस्जिदें बनवा दीं, लेकिन अब लोकतंत्र है। हिंदुओं को उनके धर्म स्थल लौटा देने चाहिए। इसमें ज्ञानवापी भी है जहां विश्वेश्वर महादेव विराजमान हैं।
उन्होंने कहा कि, कोई भी देश कितने भी वर्षो तक परतंत्र क्यों न रहा हो, मानवाधिकार की सीमा में उसे स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त रहता है, बिल्कुल इसी प्रकार हमारे मानवाधिकार का अतिक्रमण कर के जिन तत्वों ने इसे ध्वस्त किया। अब हमारा दायित्व बनता है कि हम इसे पुनः इसके स्वरूप में स्थापित करें। जगन्नाथ मन्दिर को लेकर कोई केस चल रहा था उसमें कोई पार्टी नहीं थी। मगर उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने मेरे पास सूचना भेजी की आपका इस पर दृष्टिकोण क्या है। मैंने तब 31 बिंदुओं में लिखित दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। वही न्याय बन गया वही निर्णय बन गया।
स्वामी निश्चलानंद ने कहा कि ढाई दशक पहले उनके समक्ष एक प्रस्ताव आया था जिसमें श्रीराम मंदिर के समीप ही अयोध्या में मस्जिद बनाने का प्रस्ताव बना था, जिस पर कई धर्माचार्य सहमत हो गए लेकिन स्वामी निश्चलानंद के असहमत होने से नहीं बन सका। ऐसे ही राम सेतु भी नहीं टूटा।
शंकराचार्य ने कहा कि इसके कोई संदेह नहीं कि ज्ञानवापी में शिवलिंग है। महादेव तो मक्का में भी विराजमान हैं, जिसे मक्केश्वर महादेव घोषित करना चाहिए। ऐसे ही ताजमहल में भी महादेव विराजमान हैं, जिसके दस्तावेज जयपुर नरेश के पास अब भी मौजूद हैं। जिसको मुस्लिम समुदाय के लोग मक्का कहकर जाते हैं। वह मक्केश्वर महादेव है। ये दोनों जगह भी शिवधाम रहे हैं। आखिर ये लोग कब तक सत्य को छिपाएंगे।