असमंजस: प्यार या फर्ज किसे चुनेगी संध्या
मेरा मन इस बात की गवाही नहीं दे रहा था कि मैं अपने माता पिता को कैसे उनके हाल पर छोड़ कर सात समुंदर पार चली जाऊं। अभी तक तो…...
फीचर्स डेस्क।याद है मुझे बरसात की वह रात। जनवरी का महीना था। सर्दी भी अपने पूरे जोरों पर थी। ऊपर से बरसात। उत्तर भारत में हाड़ कंपा देने वाली ठंड पड़ती है। बारिश में यह ठंड और भी बढ़ जाती है।
बाहर बादल गरज रहे थे ,एक तूफान घर के बाहर चल रहा था ,एक तूफान मेरे भीतर चल रहा था। मुझे सुबह तक निर्णय लेना था। मेरे लिए निर्णय लेना इतना आसान भी नहीं था। बहुत असमंजस की स्थिति थी।
मैं और सौरभ कॉलेज के समय से ही एक दूसरे के प्रति आकर्षित थे। धीरे-धीरे दोस्ती हुई पर यह दोस्ती ,कब प्यार में बदल गई कुछ पता ही नहीं चला। एक बार कॉलेज में फेस्ट के दौरान हम एक प्ले कर रहे थे। मेरी तो नाच ,गाना ,संगीत, एक्टिंग में शुरू से ही बहुत रुचि थी। कॉलेज में कोई भी प्रोग्राम होता था तो मैं अवश्य भाग लेती थी। उस प्ले में सौरभ दुष्यंत का रोल कर रहे थे और मैं शकुंतला का।
रिहर्सल के दौरान ही मुझे कुछ शक हुआ। जब भी सौरभ डायलॉग बोलते तो वह मेरा हाथ पकड़ते और छोड़ना ही भूल जाते। हमारे निर्देशक दोस्त कटकट बोलते रहते और सौरव पता नहीं कौन सी दुनिया में गुम हो जाते। कई बार दोस्तों ने सौरभ का मजाक भी उड़ाया। जिस दिन फाइनल परफॉर्मेंस था उसके बाद सौरभ ने मुझे बोला,
"संध्या,जरा स्टेज के पीछे मिलना, तुमसे कुछ जरूरी बात करनी है।"
मैंने ज्यादा कुछ दिमाग नहीं लगाया, सोचा कहीं जाना होगा या कुछ नोट्स चाहिए होंगे।
जैसे ही हमारा एक्ट खत्म हुआ मैं बिना चेंज किए ही स्टेज के पीछे चली गई। सौरभ तो वहां पहले से ही मौजूद थे। दुष्यंत की वेशभूषा में सौरभ जंच रहा था। मैंने भी शकुंतला की वेशभूषा और फूलों की ज्वेलरी पहन रखी थी।
आओ संध्या, तुम्हारा ही इंतजार कर रहा हूं!
अरे आ गई बाबा! क्या कहना चाहते हो! कुछ नोट्स चाहिए क्या? परीक्षा सिर पर है !"
अरे संध्या नोटस से भी जरूरी बात है!
मेरे दिमाग की बत्ती जलने शुरू हुई कि ऐसी कौन सी बात है जो सौरभ फेस्ट के बीच में ही मुझसे कहना चाहता है।
सौरभ ने बिना देर किए झट से मेरा हाथ पकड़ा,"जीवन के सफर में मेरे साथ चलोगी, उमर भर साथ दोगी मेरा ,जीवनसंगिनी बनोगी!!!"
सौरभ ने फटाफट अपने मन की बात कह दी और मैं परेशान, कुछ नारी सुलभ लज्जा!!!
समझ ही नहीं पाई क्या जवाब दूं?
परंतु सौरभ तो जैसे आज सोच कर ही आया था कि वह मेरा जवाब जाने बिना मेरा हाथ ही नहीं छोड़ेगा। मुझे यह भी डर लग रहा था कि ऐसे ही दोस्त देखेंगे तो खूब मजाक बनाएंगे । पहले ही दुष्यंत और शकुंतला का एक्ट करने के बाद सब मुझे " हे शकुंतले हे ,शकुंतले "बोलते रहते हैं।
बात को खत्म करने के लिए मैंने बोल दिया,
"हां हां ठीक है!अभी क्या बताऊं? बाकी बात बाद में करते हैं"
परंतु सौरभ मुझसे हां करा कर ही माना। वैसे मैं भी मन ही मन सौरभ को पसंद करने लग गई थी।
बात आई गई हो गई।
हम दोनों पहले की तरह ही दोस्त रहे और हमने कॉलेज की फाइनल ईयर की परीक्षा पास कर ली। सब बच्चे नौकरी की तलाश के लिए कैम्पस इंटरव्यू में हिस्सा ले रहे थे।हम दोनों का सिलेक्शन भी अच्छी मल्टीनेशनल कंपनी में हो गया।
मेरी मां सौरव के बारे में जानती थी क्योंकि कई बार सौरव मुझे कॉलेज के लिए पिक करने घर आता था।
उस दिन शाम के समय सौरभ हमारे घर आया। चाय पीने के बाद उसने मेरी मां से बात करना शुरू किया । सौरभ की नौकरी किसी बड़ी कंपनी में लगी थी और कंपनी वाले उसको कुछ समय के लिए अमेरिका प्रोजेक्ट पर भेज रहे थे। मुझे भी मल्टीनेशनल कंपनी से ऑफर आया हुआ था। मेरी कंपनी का ऑफिस भारत और अमेरिका दोनों जगह था। सौरभ ने मेरे माता-पिता के आगे विवाह का प्रस्ताव रख दिया।
"आंटी मै संध्या से विवाह करना चाहता हूं। मेरी इच्छा है कि मैं संध्या को साथ लेकर ही अमेरिका जाऊं।"
मेरे माता-पिता तो एकदम से खुश हो गए ।सौरभ अच्छे परिवार का लड़का है और मेरा दोस्त भी। देखने में भी अच्छा लंबा ,एक अच्छे व्यक्तित्व का स्वामी है। मेरे माता पिता ने झट से हामी भर दी और बोला ,"एक बार संध्या से बात कर कर लेते हैं।"
मैं अपने माता-पिता की इकलौती संतान हूं और उन्होंने मुझे अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए बहुत मेहनत और सहयोग से मेरा साथ दिया है।
मेरा मन इस बात की गवाही नहीं दे रहा था कि मैं अपने माता पिता को कैसे उनके हाल पर छोड़ कर सात समुंदर पार चली जाऊं। अभी तक तो वह ही मुझको संभाल रहे थे। मेरी पढ़ाई, कोचिंग, परीक्षाएं ,रात दिन मेरी सेवा करना।
आज मैं जब अपने पैरों पर खड़ी हो गई तो मैं अपने सुख की खातिर कैसे अपने माता पिता को छोड़कर चली जाऊं।
मां ने बोला,"संध्या बेटा! जिंदगी में ऐसे सुनहरे मौके बार-बार नहीं मिलते। सौरभ अच्छा लड़का है। तुम उसको जानती पहचानती भी हो तुम्हारा दोस्त भी है यदि दोस्त ही जीवन साथी बन जाए तो क्या बुराई है।"
हम तो यहां भारत में ही रहेंगे। तुम्हें अपना जीवन भी तो जीना है। लड़कियां तो पराई ही होती है उन्हें अपने माता-पिता का घर छोड़कर जाना ही होता है।
मेरे लिए आज बहुत तूफान भरी रात थी मुझे माता पिता और सौरभ दोनों में से एक का चुनाव करना था। मेरे लिए दोनों ही जिंदगी का अनमोल हिस्सा है। बस मुझे यह लगता था यदि भारत में ही कहीं पर हूं तो अपने माता पिता को सुख दुख में देखने आ सकती हूं ।विदेश से आना तो हर बार संभव नहीं होता।
बाहर बारिश की बूंदे टप टप पढ़ रही थी। मेरे मन पर बहुत बोझ था। कुछ निर्णय नहीं ले पा रही थी। सारी रात सो भी नहीं पाई । सुबह होते होते कुछ निर्णय ले लिया। मैंने मां को जाकर बोला "एक शर्त है आपको मेरे साथ अमेरिका चलना होगा। तो मैं शादी के लिए तैयार हूं।'
मां एकदम से सकपका गई बोली," बेटा तुम अपनी नई जिंदगी की शुरुआत कर रहे हो ,तो हम कैसे तुम्हारे साथ रह सकते हैं? तो ठीक है मैं आपको यहां अकेले छोड़कर भी नहीं जा सकती!"मैंने भी अपना निर्णय सुना दिया।
सुबह सब लोग अपने काम में लग गए मैं भी नहा धोकर नाश्ता कर रही थी तभी घंटी बजी। सौरव भी आए होंगे
"नमस्ते आंटी!"
"आओ सौरव बेटा!"
"बैठिए नाश्ता करिए!".
"नहीं, नाश्ता तो मैं कर आया हूं। केवल ग्रीन टी दे दीजिए।"
मां ने सौरभ को ग्रीन टी का कप पकड़ाया। सौरभ की प्रश्न सूचक निगाहें मेरी ओर देख रही थी। वह मेरा जवाब जानने के लिए ही आया था। मैं अपने निर्णय पर अडिग थी। वह भी भलीभांति जानता था कि मैं अपने माता-पिता को ऐसे छोड़कर नहीं जा सकती। मां अक्सर बीमार रहती है तो उनके प्रति मेरी भी कोई जिम्मेदारी बनती है।
सौरभ ने बोला,"आंटी एक प्रस्ताव लेकर आया हूं शायद आपको पसंद आए। मैं चाहता हूं कि संध्या की शादी के बाद आप लोगों को कुछ समय हमारे साथ अमेरिका में रहना पड़ेगा। जैसे 6 महीने आप अमेरिका में रहिए 6 महीने इंडिया में। आपको अपना देश भी नहीं छोड़ना पड़ेगा और संध्या को अपने माता-पिता भी नहीं।
"वाह! यह तो बहुत अच्छी बात है!"मेरे मुंह से अनायास ही निकला।
सौरभ ने मेरी समस्या झट से हल कर दी थी। सौरभ मुझे भी तो खोना नहीं चाहता था ।बाहर बारिश भी रुक चुकी थी। मेरे मन का तूफान भी शांत हो चुका था। मन के कोने से शहनाई की गूंज सुनाई दे रही थी।
झट से उठकर मैंने सौरव का हाथ थाम लिया "सौरभ आज तुम्हारे इस प्रस्ताव से मेरे मन में तुम्हारे लिए प्यार और सम्मान और बढ़ गया है।"
मेरे मन से भी चिंता के बादल छंट गए।
बाहर बारिश रुक चुकी थी और मौसम सुहावना हो गया था।
इनपुट सोर्स: रेखा मित्तल
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