काशी के बड़े गणेश : 2 हजार सालों से यहां बप्पा पूरे परिवार के साथ करते हैं निवास

काशी के बड़े गणेश : 2 हजार सालों से यहां बप्पा पूरे परिवार के साथ करते हैं निवास

वाराणसी। काशी..... ! यह नाम जेहन में आते ही, बम बम, शिव के जयकारे, बनारस की गलियां, शिवालयों का दिव्य स्थल, तिलक लगाये भक्तों की टोली, अस्सी घाट की आरती, ब्राहम्णों का मंत्रोंचार, शंखनाद की प्रचंड आवाज कानों में न सिर्फ सुनाई पड़ती है, बल्कि सारी तस्वीरें ही मानो आंखों के सामने कौंध उठती हैं और हो भी क्यों न जहां स्वयं शिव निवास करते हों, वहां की अनुपम छटा अद्वितीय, अप्रीतम तो होगी ही। लेकिन, क्या आप जानते हैं शिव के साथ काशी गणपति निवास के लिये भी प्रसिद्ध है। यानी शिव के पुत्र भगवान गणेश भी यहीं निवास करते हैं और वह भी अपने पूरे परिवार, यानी पत्नी व बेटे व अपनी सवारी मूशक के साथ। पौराणिक मान्यता है कि काशी में सभी देवी देवता निवास करते हैं, लेकिन काशी में ही भगवान गणपति का एक विशेष मंदिर है, जिसमें मूर्ति स्वयं धरती से प्रकट हुई थी और लगभग 2 हजार साल पुरानी इस मूर्ति में अलौकिक शक्तियों का वास है। वैसे काशी में 56 विनायकों का होना बताया गया है, लेकिन इन सब के प्रमुख हैं, बड़े गणेश। यह मंदिर वाराणसी रेलवे स्टेशन से लगभग पांच किलोमीटर दूर लोहटिया के बड़े गणेश मोहल्ले में है। ऐसी मान्यता है कि यह मनोकामना पूरी करने वाले भगवान हैं और इनका दर्शन करने वालों के हाथ कभी खाली नहीं रहते हैं। आइये इस मंदिर से जुडी कुछ रोचक व अध्यात्मिक बातों से आपको रूबरू कराते हैं। 

2 हजार सालों निवास 

बड़े गणेश मंदिर के बारे में जो मान्यता है, वह यह है कि यह मंदिर लगभग 2 हजार साल पुराना है और यहां स्थातिप गणेश मूर्ति स्वयं धरती से प्रकट हुई थी। मुगलकाल में जब मंदिरों को तहत नहस किया जा रहा था, तब यह मंदिर भी उसकी जद में आया था। बाद में इस मंदिर का जीर्णोद्धार पेशवा बाजीराव ने करवाया था। तब यह यह मंदिर अपने वर्तमान अस्तित्व में है। कालांतर में मंदिर में सुविधा, व्यवस्था को लेकर लगातार व्यावस्थापकों द्वारा कार्य कराये जाते रहे, जिससे यह मंदिर अब बेहद ही सुंदर बन चुका है। मान्यता है कि भगवान गणेश इस मंदिर में अपने पूरे परिवार के साथ विराजमान हैं। जिसमें उनकी दोनों धर्म पत्नियां रिद्धि और सिद्धि और दोनों पुत्र शुभ लाभ भी है। इस गणेश मूर्ति की विशेषता गणपति के त्रिनेत्र का होना है, भारत में कुछ ही ऐसी मूर्तियां हैं, जिनमें गणेश का ऐसा दिव्य रूप है, लेकिन स्वयंभू मूर्ति होने के कारण यह देश का एकलौता ऐसा मंदिर है, जहां गणपति विराजमान हैं। 

मंदिर की खासियत 

इस मंदिर की खासियत को अगर कला व संस्कृति की नजर से देखा जाये तो इस मंदिर के निर्माण में स्थापतय कला का बेहद ही सुंदर तरीके से इस्तेमाल किया गया है। मंदिर का निर्माण 40 खंभों को आधार बनाकर बनाया गया है, जो इसे विशेष तरह की प्राचीन स्थापत्य कला से जुडा होने का आभास कराता है। आध्यात्मिक तौर पर इस मंदिर की प्रसिद्धी यहां आने वाले श्रद्धालुओं की वजह है। लोगों का मानना है कि यहां मांगी गयी मुराद हमेशा पूरी होती है और गणेश के दरबार से कोई भी खाली हाथ लौटकर नहीं जाता है।

विशेष दिनों पर बढती है भीड

वैसे तो इस मंदिर में प्रतिदिन हजारों लोग दर्शन करने के लिये पहुंचते हैं। लेकिन कुछ विशेष पर्वों पर यहां भीड़ बहुत अधिक बढ़ जाती है। खास कर गणेश चतुर्थी पर यहां भीड़ का रेला आस्था का सैलाब लेकर आता है। हालांकि दिन कृष्ण पक्ष में चतुर्थी के दिन यहां गर्भ गृह में गणेश की विशेष पूजा होती है, जिसे आम श्रद्धालुओं नहीं देख पाते हैं। इस खास पूजा से पहले मंदिर के कपाट बंद कर दिये जाते हैं। 

कैसा है स्वरूप 

काशी के बड़े गणेश नाम, काशी विश्वनाथ की ही तरह काशी के घर घर में गूंजता है। 56 विनायक के प्रमुख बड़े गणेश का स्वरूप बहुत ही दिव्य है। मंदिर परिसर के बिल्कुल मध्य में गर्भ गृह है और इसी गर्भ गृह में सिंदूरी रंग की एक विशाल प्रतिमा है, इस प्रतिमा की लंबाई 5 फिट से कुछ बड़ी नजर आती है। जब आप इस प्राचीन मूर्ति का पूरे मनोयोग से दर्शन करेंगे तो आपको अपने अंदर आध्यात्मिक उर्जा का संचार होता हुआ दिखेगा। यहीं पर रिद्धि सिद्धि व शुभ लाभ भी मौजूद हैं। गणेश जी के दर्शन कर जब आप गर्भ गृह से बाहर निकलते हैं तो गणेश जी के वाहन मूशक की बेहद ही भावपूर्ण प्रतिमा का दर्शन होता है। यह बिल्कुल सजीव स्थिति का आभास कराता है, जैसे वाहन पर बस गणपति आरूढ ही होने वाले हैं। मंदिर परिसर में ही एक कुआं है और एक दंत हस्त विनायक की प्रतिमा भी है। इसके अलावा मंदिर परिसर में ही मनसा देवी, संतोषी मां, हनुमान जी की भी प्रतिमाएं हैं । मान्यता है कि गणेश जी के दर्शन के बाद इन सभी मूर्तियों का दर्शन बेहद फलदायी होता है। 

दर्शन करने जाये तो ध्यान रखें 

अगर आप भी काशी में बड़े गणेश दर्शन करने जाये तो कुछ खास बातों का ख्याल रखें। जैसे यहां भादो महीने में गणेश जी का जन्मोत्सव मनाया जाता है और माघ के महीने में भी चतुर्थी को भव्य आयोजन होता है। इन दोंनों दिन इस मंदिर की छटा अनुपम होती है, अगर आप इस दिन यहां जा रहे हैं तो भीड़ तो अधिक होगी, लेकिन आध्यात्मक का आनंद भी शिखर पर होगा। जन्म दिन के उपलक्ष्य में यहां गणेश जी को दूध, दही, घी, शहद व गंगाजल से पंचामृत का अनुपम स्नान कराया जाता है और स्नान के बाद उस पंचामृत को श्रद्धालुओं में प्रसाद स्वरूप वितरित किया जाता है। कहा जाता है कि यह प्रसाद सर्वोत्तम है और इसका सेवन करने से सारे बिगडे काम बन जाते हैं और जीवन में सफलता मिलती है। स्नान के बाद गणेश जी का भव्य शृंगार होता है। 

कितने बजे तक होता है दर्शन 

बड़े गणेश मंदिर में वैसे तो साल के सभी दिन दर्शन किये जा सकते हैं। लेकिन, सप्ताह में बुधवार का दिन बेहद ही खास इनके दर्शन के लिये माना जाता है। इस दिन इस मंदिर में अधिक भीड़ होती है। यह मंदिर प्रातः 4:00 बजे खुल जाता और रात 10:30 बजे तक यहां लोग दर्शन कर सकते हैं। सुबह की बेला में मंगल आरती सुबह 4:30 बजे होती है, जबकि मध्यान आरती दिन में 10:30 बजे करायी जाती है। इसके अलावा शयन आरती का क्रम यहां पर रात 10:30 बजे होता है। इसके बाद मंदिर के कपाट बंद कर दिये जाते हैं।

 बड़े गणेश मंदिर तक जाने के लिये आपको कैंट स्टेशन से ही वाहन मिल जायेंगे। यहां से इस मंदिर की दूरी लगभग पांच किलोमीट है। वैसे तो यह मंदिर खुद ही बहुत प्रसिद्ध है लेकिन, इस मंदिर के पास ही हरिशचंद्र इंटर कॉलेज है, जिससे आपको यह स्थान खोजने में काफी आसानी होगी।