2021 Navratri Special : माँ की अखंड और प्राकृतिक ज्योत के दर्शन के लिए आइये चलें हिमांचल के ज्वाला देवी मंदिर

इस नवरात्री फोकस हर लाइफ आप के लिए घर बैठे देश के कोने-कोने से देवी के 9  स्वरूपों के दर्शन का मौका लेकर आया है। इसी क्रम में आज हम हिमांचल प्रदेश में ज्वाला देवी मंदिर के बारे में जानेगे। ये हज़ारों साल पुराना मंदिर है और यहाँ माता की अखंड ज्योत प्राकृतिक रूप से मौजूद है....

2021 Navratri Special : माँ की अखंड और प्राकृतिक ज्योत के दर्शन के लिए आइये चलें हिमांचल के ज्वाला देवी मंदिर

फीचर्स डेस्क। नवरात्री में देवी के मंदिरों में खासी हलचल रहती है। सभी अपनी आराध्य देवी के दर्शन के लिए एक्ससिटेड रहते हैं पर इस समय मंदिरों में काफी भीड़ और लम्बी वेटिंग भी होती है। इसीलिए इस नवरात्री फोकस हर लाइफ आप के लिए घर बैठे देश के कोने-कोने से देवी के 9  स्वरूपों के दर्शन का मौका लेकर आया है। आज हम चलेंगे हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा से 30 किलोमीटर दूर ज्वाला देवी के प्रसिद्ध मंदिर। इस मंदिर को कई लोग "ज्योत वाली मां का मंदिर" भी कहते हैं। यह मंदिर माता के अन्य मंदिरों की तुलना में अनोखा है क्योंकि यहां पर किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है बल्कि ज्योत की पूजा होती है। अगर नवरात्रों की बात की जाएं तो इन दिनों में इस मंदिर में दर्शन करने के लिए एक दिन पहले लाइन में लगना पड़ता है। 51 शक्तिपीठ में से एक इस मंदिर में नवरात्र में भक्तों का तांता लगा रहता है। तो चलिए जानते हैं ज्वाला मंदिर से जुड़ी दिलचस्प बातों के बारे में।

दैवीय है ये ज्वाला

इस मंदिर में माता रानी ज्वाला के रूप में मौजूद हैं। ये ज्वाला कब से हैं कांगड़ा में इसके बारे कोई ठीक-ठीक जानकारी नहीं है , इसका मतलब है ये अनादिकाल से स्थित है।  इस ज्वाला के ओर- छोर का पता आज तक कोई नहीं लगा पाया है। ये हज़ारों सालों से बिना रुके बिना बुझे ऐसे ही जल रही है।

लाख कोशिशों के बाद भी दुश्मन बुझा ना पाए

किताबों में ऐसा लिखा है कि बादशाह अकबर ने इस ज्वाला को बुझाने की कोशिश की थी लेकिन वो नाकाम रहा। दरअसल ऐसा कहा जाता है कि अकबर के मन में मंदिर में जलती हुई ज्वाला को देखकर शंका हुई। उसने ज्वाला को बुझाने के लिए नहर का निर्माण करवाया। उसने अपनी सेना को मंदिर में जल रही ज्वाला पर पानी डालकर बुझाने के आदेश दिए। लाख कोशिशों के बाद भी अकबर की सेना मंदिर की ज्वाला को बुझा नहीं पाए। जब अकबर ऐसा कर नहीं पाया तो उसने अपनी हार मान ली। देवी मां की अपार महिमा को देखते हुए उसने पचास किलो सोने का छतर देवी मां के दरबार में चढ़ाया लेकिन माता ने वह छतर कबूल नहीं किया और वह छतर गिर कर किसी अन्य पदार्थ में परिवर्तित हो गया। आज भी बादशाह अकबर का यह छतर ज्वाला देवी के मंदिर में रखा हुआ है।

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ब्रिटिशर्स भी हुए नाकाम

 ब्रिटिश काल में अंग्रेजों ने भी भारतियों की श्रद्धा के इस पुंज को मिटाने के लिए अपनी तरफ से पूरा जोर लगा दिया था। शुरू में वो जमीन के अंदर से निकलती इस ऊर्जा का इस्तेमाल करना चाहते थे पर स्रोत के बारे में पता ना चल पाने के कारण झुंझुला क्र इसको मिटाने की कोशिशे की। लेकिन माँ की महिमा और लोगो की श्रद्धा के आगे वो भी बुरी तरह से परास्त हुए।

वैज्ञानिक भी हैं भौचक्के

विज्ञान के इतनी तरक्की कर लेने के बावजूद भी आज तक कोई भी वैज्ञानिक इस ज्वाला के लगातार जलने का कारण का पता नहीं लगा पाएं हैं। वो भी ईश्वर की महिमा के आगे लाचार से दिखतें हैं।

ऊर्जा का अनूठा स्रोत है ये मंदिर

यह मंदिर माता के अन्य मंदिरों की तुलना में अनोखा है क्योंकि यहां पर किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रही नौ ज्वालाओं की पूजा होती है। यहां पर पृथ्वी के गर्भ से 9 अलग-अलग जगह से ज्वालाएं निकल रही हैं जिसके ऊपर ही मंदिर बना दिया गया है। इस मंदिर का प्राथमिक निमार्ण राजा भूमि चंद के करवाया था। बाद में पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसारचंद ने 1835 में इस मंदिर का पूर्ण निमार्ण कराया।

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